Thursday, May 10, 2012

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पदोन्नति में आरक्षण की आग मप्र में भी

पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने की आग मध्यप्रदेश में भी सुलगने लगी है। मंत्रालय, विधानसभा सचिवालय सहित अन्य सरकारी दफ्तरों में अधिकारी-कर्मचारी लामबंद होने लगे हैं। पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को भी दस्तक दी जा रही है।
राज्य मंत्रालय के अधिकारी-कर्मचारियों ने सामूहिक हस्ताक्षयुक्त एक ज्ञापन मुख्यमंत्री, सामान्य प्रशासन विभाग के राज्यमंत्री, मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव को देते हुए मांग की है कि इसी वर्ष 27 अप्रेल को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश का पालन करते हुए मध्यप्रदेश में भी पदोन्नति में आरक्षण समाप्त किया जाए। विधानसभा सचिवालय अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त समिति ने राज्यपाल से भेंटकर आरक्षित वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण न दिए जाने की मांग की है। अन्य सरकारी दफ्तरों में भी सक्रियता बढ़ी है। प्रदेश की भाजपा सरकार को यह भली भांति है कि प्रदेश में अगले वर्ष विधानसभा के आम चुनाव हैं, इसलिए किसी भी वर्ग को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता, सूबे में अधिकारी-कर्मचारियों को एक बड़ा वर्ग है। सरकार को इसकी अहमियत पता है। ऐसे में सरकार अभी इनके रुख को देख रही है। कोर्ट के फैसले का राजनैतिक अर्थ खोजे जा रहे हैं कानूनी बारीकियां भी समझीं जा रहीं हैं।
वरिष्ठता को मिले महत्व -
सूबे के अधिकारी-कर्मचारियों का जोर इसी बात पर है कि नियुक्तियों में तो आरक्षण नियम का पालन हो, लेकिन पदोन्नति में यह उचित नहीं है। वर्तमान नियमों के तहत जहां एक ओर अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों को एक पदोन्नति पाने में ही 20-20 वर्ष लग रहे हैं, जबकि आरक्षित वर्ग के कर्मचारी मात्र 2-3 वर्ष की अवधि में ही पदोन्नति प्राप्त कर लेते हैं। स्थिति यह हो रही है जो जूनियर कर्मचारी अपने सीनियर्स से भी सीनियर हो जाते हैं। तर्क दिया जा रहा है कि देश की सर्वोच्च न्यायालय की मंशा यही है कि देश के सभी प्रदेशों में भी आरक्षित वर्ग को पदोन्नति में दिए जा रहे आरक्षण समाप्त किया जाकर वरिष्ठता के आधार पर ही आरक्षण मिले।

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