Saturday, July 14, 2012

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‘दुस्साहसी’ हैं सरकारी महकमे


प्रदेश के 16 नगरीय निकायों में हो चुनावों के चलते आचार संहिता लगी होने के बावजूद सरकारी महकमे मनमानी करने से नहीं चूक रहे हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को भी अंधेरे में रखा जा रहा है, आयोग की सख्ती के चलते सरकार को कई निर्णय बदलने पड़े या फिर उनमें रोक लगाना पड़ी। फिर भी दुस्साहस कम नहीं हो रहा है।
नगरीय निकाय चुनाव की घोषणा के साथ आयोग ने स्पष्ट कर दिया था कि चुनाव कार्य में लगे अधिकारी-कर्मचारियों का तबादला न किया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। सरकार ने एक के बाद एक तबादले करना शुरू कर दिए। आईएएस और आईपीएस अफसरों का लम्बे समय से चल रहा तबादला मंथन का परिणाम आचार संहिता के दौरान  ही उजागर हुआ। अफसरों के थोक में तबादले हुए। उन जिलों और संभागों के अफसर भी प्रभावित हुए जहां चुनाव आचार संहिता प्रभावी है। राज्य निर्वाचन आयोग ने इसे गंभीरता से लेते हुए उनके तबादलों पर रोक लगा दी। सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ा। इसी प्रकार सहकारिता, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, वन विभागों ने भी दुस्साहस दिखाया। आयोग इन जिलों के प्रभावित अफसर और कर्मचारियों के तबादलों पर रोक लगा दी।
गलती या मनमानी -
सवाल उठता है जब आयोग पूर्व में ही आचार संहिता प्रभावी जिलों में तबादलों पर रोक लगा चुका है तो फिर इन जिलों के अफसरों और कर्मचारियों के तबादले किए जाने का निर्णय समझ से परे है। सरकार के इस निर्णय की चर्चा मंत्रालय में तो है, लेकिन इस मामले में अफसर खुलकर चर्चा करने से कतराते हैं। आईएएस और आईपीएस अफसरों की सूची तो मुख्य सचिव से अनुमोदित हुए मुख्यमंत्री की हरीझंडी मिलने के बाद जारी होती है। यानी मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से भी ऐसा निर्णय करवा लिया गया जो नहीं होना चाहिए था। आयोग के सख्त रवैया के कारण निर्णय पर रोक लगाना पड़ी।

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