Friday, July 20, 2012

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विधानसभा : छोटों पर गाज, बड़े सुरक्षित

विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान मुख्य विपक्षी दल कांगे्रस द्वारा किए गए हंगामे और उनके आसंदी तक पहुंच जाने के मामले में विधानसभा सचिवालय ने इसे सुरक्षा में चूक माना है। इसके लिए सुरक्षा से जुड़े चार लोगों को निलंबित करते हुए पांच से स्पष्टीकरण मांगा गया है। सचिवालय की इस कार्रवाई से असंतोष भी दिखने लगा है। इसका प्रमुख कारण छोटों पर गाज और बड़ों पर आंच न आना माना जा रहा है।
मामला 17 जुलाई की घटना से जुड़ा है। इस दौरान मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सदस्य स्पीकर के कक्ष के बाहर धरने पर बैठ गए, इस कारण न तो स्पीकर सदन में पहुंच सके और न ही राजदण्ड सदन में ले जाया गया। सदन की बात की जाए तो यहां कांग्रेसी विधायक सभापति की आसंदी के पास जा पहुंचे। हालांकि इस घटना के बाद कांग्रेस के दो विधायकों चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी और कल्पना पारुलेकर की सदस्यता समाप्त की जाकर आधा दर्जन विधायकों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला बना है। अब सभी की नजर यहां की सुरक्षा पर थी, कि मार्शलों के होते हुए आसंदी तक विधायक कैसे पहुंच गए।
11 लोग आए लपेटे में -
सहायक संचालक सुरक्षा सतीश कुमार पाण्डे, मार्शल कमलेश सिंह, सहायक मार्शल शिवाकांत दुबे, सुरक्षा गार्ड सुरेश मिश्रा को कर्त्तव्य में लापरवाही के कारण निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा वाचस्पति मिश्रा मार्शल, सहित सहायक मार्शलों में प्रदीप पाण्डे, विश्वनाथ चर्मकार, अरविन्द शर्मा, नारायण गौतम, रावेन्द्र पाण्डे और वंदना अंवाडकर सुरक्षा गार्ड को कारण बताओ नोटिस दिया गया है।
जिम्मेदारी तय नहीं -
सचिवालय ने चार को निलंबित किए जाने के साथ सात लोगों से स्पष्टीकरण तो मांगा है, लेकिन अभी तक अन्य वरिष्ठों की जिम्मेदारी तय नहीं की है। मालूम हो अरविन्द रघुवंशी सुरक्षा संचालक हैं, जेके शर्मा उप संचालक सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। सतीश भार्गव चीफ मार्शल हैं।
अधिकारी बोले -
प्रारंभिक तौर पर जिनकी गलती नजर आई, उन पर कार्यवाही की गई है। मामले की जांच की जाएगी, यदि इसमें अन्य लोगों की लारपवाही सामने आएगी तो उनके खिलाफ भी कार्यवाही होगी।
राजकुमार पाण्डे, प्रमुख सचिव विधानसभा

9:30 PM - No comments

स्पीकर रोहाणी सेफ ...!

विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी के प्रति अविश्वास प्रकट करते हुए विपक्षी सदस्यों ने भले ही सचिवालय को अविश्वास प्रस्ताव दिया हो, लेकिन स्पीकर के लिए यह राहत की बात है कि वे पूरी तरह सुरक्षित (सेफ) हैं।
राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सदन में सरकार को घेरने की हरसंभव कोशिश की। ये भ्रष्टाचार पर चर्चा कराए जाने को अड़े रहे। मानसून सत्र के पहले दिन यानी 16 जुलाई को जब मांग नहीं मानी गई तो 17 जुलाई को तो विपक्षी दल के सदस्यों ने स्पीकर के कक्ष के सामने धरना दे दिया। मुख्य विपक्षी दल ने स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रकट करते हुए विधानसभा के प्रमुख सचिव को अविश्वास प्रस्ताव भी दिया। चूंकि अविश्वास प्रस्ताव स्पीकर के खिलाफ है, इसलिए सचिवालय अभी भी माथापच्ची में जुटा है। नियमों को खंगाला जा रहा है, विधानसभा कार्यसंचालन नियमों को देखकर तो यही कहा जा रहा है कि स्पीकर रोहाणी की कुर्सी सुरक्षित है। हालांकि अविश्वास प्रस्ताव अभी अमान्य नहीं किया गया है, सचिवालय कभी भी यह फाइल बंद कर सकता है।
यह है नियम -
विधानसभा कार्यसंचालन नियम के तहत विधानसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की सूचना 14 दिन पूर्व देना अनिवार्य है। यह भी देखना जरूरी है कि सूचना देने के बाद कार्रवाई के लिए 14 दिन शेष हैं या नहीं। स्पीकर के लिए यही नियम राहत का है क्योंकि मानसून सत्र मात्र 12 दिन का था, और इसमें 10 बैठकें होना थीं। सत्र की एक बैठक हो चुकी थी। यानी 14 दिन का समय ही नहीं था। सदन की कार्रवाई भी समय से पहले स्थगित हो गई। सचिवालय के एक जिम्मेदारी अधिकारी बताते हैं कि ऐसी परिस्थिति में अविश्वास प्रस्ताव स्वयं ही अमान्य हो जाएगा।
10 फीसदी सदस्यों की सहमति जरूरी -
विधानसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को मान्य किए जाने के मामले में सदन में मौजूद 10 फीसदी सदस्यों की सहमति जरूरी है। यानी 230 सदस्यों वाली विधानसभा के यदि 23 सदस्य सदन में अविश्वास के पक्ष में अपना वोट देते हैं तो प्रस्ताव मान्य हो जाता है, यानी जिसके खिलाफ प्रस्ताव लाया जाता है उसे कुर्सी छोड़ना होगी।

9:29 PM - No comments

निलंबित आईएएस कटेला बहाल

महिला से दुष्कृत्य किए जाने के आरोप में पांच साल से निलंबित चल रहे आईएएस अफसर वीके कटेला को राज्य सरकार ने बहाल कर दिया है। इन्हें संस्कृति विभाग का अपर सचिव पदस्थ किया गया है।
मामला 19 मार्च 1999 का है जब ये बिलासपुर जिला पंचायत में सीईओ थे। उस दौरान उनके अधीनस्थ आदिम जाति कल्याण विभाग की एक अधीक्षिका ने इनके ऊपर ज्यादती का आरोप लगाते हुए एक नवम्बर 2000 को अनुसूचित कल्याण थाने में ज्यादती की रिपोर्ट दर्ज कराई। न्यायालय में चालान पेश हुआ और गिरफ्तारी भी हुई। मामले की गंभीरता को देखते हुए इधर मध्यप्रदेश सरकार ने 15 अप्रेल 2007 में इन्हें निलंबित करते हुए विभागीय जांच भी शुरू कर दी। आरोप सिद्ध न होने के कारण हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था। हाईकोर्ट से राहत मिलने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि कटेला का निलंबन भी समाप्त हो जाएगा। 15 जुलाई को इनकी निलंबन अवधि समाप्त हो रही थी। अब सरकार ने भी इनको बहाल कर दिया है।
मंत्रालय में इनकी बदली जिम्मेदारी -
राज्य सरकार ने मंत्रालय स्तर पर एक दर्जन अफसरों की जिम्मेदारी भी बदली है। केदार शर्मा को अपर सचिव कृषि, विवेक जैन को अपर सचिव वाणिज्यिक कर, यूके सुबुद्धि को अपर सचिव वित्त, मूलचंद वर्मा को उप सचिव गृह, अजय शर्मा को उप सचिव गृह, अभय वर्मा को उप सचिव सामाजिक न्याय, अमर सिंह चंदेल को उप सचिव जीएडी, उषा परमार को उप सचिव जीएडी, संजीव श्रीवास्तव उप सचिव श्रम, एसएल अहिरवार को उप सचिव आवास एवं पर्यावरण पदस्थ किया गया है।

9:27 PM - No comments

दो घण्टे में निपट गई 10 दिवसीय बैठक

विधानसभा के 12 दिवसीय सत्र में कुल 10 बैठकें होना थीं, लेकिन सदन में सत्तापक्ष और विपक्षी दल के सदस्यों में तीखी तकरार, लगातार व्यवधान के चलते सदन की बैठकें तीन दिन में ही स्थगित कर दी गर्इं। तीन दिन भी सदन की कार्रवाई पूरे दिन नहीं चल सकी। विधानसभा सचिवालय द्वारा तैयार किए गए रिकार्ड पर नजर डाली जाए तो पहले दिन यानी 16 जुलाई को सदन की बैठक मात्र 32 मिनट की चल सकी। अगले दिन यानी 17 जुलाई को कार्रवाई शुरू होते ही हंगामा शुरू हो गया। विपक्षी दल के सदस्यों ने स्पीकर के चेम्बर के बाहर धरना दे दिया। इस कारण स्पीकर चेम्बर के बाहर ही नहीं सके। हालांकि सभापति आसंदी पर मौजूद रहे। उन्होंने सदन का संचालन किया। इस दिन एक घण्टे तक कार्रवाई चली। 18 जुलाई को भी सदन की कार्रवाई हंगामे की भेंट चढ़ गई। इस दिन मात्र 33 मिनट ही कार्रवाई चल सकी।

9:26 PM - No comments

3 साल में 190 करोड़ की काली कमाई जब्त

तीन साल में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ की गई छापे की कार्यवाही के दौरान 190 करोड़ रुपए से अधिक की काली कमाई जब्त की गई। विधायक तुलसी सिलावल के सवाल पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा में लिखित उत्तर में बताया कि लोकायुक्त संगठन द्वारा कुल 102 पंजीबद्ध प्रकरणों के अंतर्गत अधिकारी, कर्मचारियों के विरुद्ध छापे की कार्यवाही की गई। छापे की कार्यवाही में 190 करोड़ 51 लाख 45 हजार 152 रुपए जब्त किए गए। 6 प्रकरणों में न्यायालय में चालान पेश किया गया। 96 प्रकरण वर्तमान में जांच में लंबित हैं।

9:26 PM - No comments

पदोन्नति में जारी रहेगा आरक्षण

प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण को लेकर मचे बवाल के बीच राज्य सरकार ने यह स्पष्ट किया है आरक्षण जारी रहेगा। राज्य सरकार ने लोक सेवा आयोग को भी ऐसी ही जानकारी भेजी है। जिसमें आरक्षण जारी रखने की बात कही गई है।
भाजपा विधायक दीपक जोशी और ध्रुव नारायण सिंह को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिए विधानसभा में लिखित उत्तर में बताया कि सर्वोच्च न्यायालय की पीठ द्वारा अनेक राज्यों की याचिकाओं को एकजाई कर एम नागराज प्रकरण में 19 अक्टूबर 2006 को निर्णय पारित करते हुए निर्देश दिए हैं कि संबंधित राज्य को पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने से पूर्व पिछड़ापन, प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता, समग्र प्रशासनिक दक्षता प्रदर्शित होना चाहिए। मुख्यमंत्री ने बताया किआदिम जाति तथा अनुसंधान विकास संस्थान द्वारा अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों का सामाजिक आर्थिक, शैक्षणिक एवं प्रशासनिक पिछड़ापन की रिपोर्ट तैयार की गई। उन्होंने स्वीकार किया कि पदोन्नति में आरक्षण को समाप्त किए जाने के मामले में विभिन्न संगठनों के मांग पत्र भी प्राप्त हुए हैं। इस विषय पर महाधिवक्ता की राय ली गई, महाधिवक्ता द्वारा दिए गए अभिमत के अनुसार लोक सेवा आयोग को पदोन्नति में आरक्षण जारी रखने को कहा गया। आयोग को यह पत्र 26 जून 2012 को लिखा गया है।

Saturday, July 14, 2012

10:32 PM - No comments

अरुणा के लिए अवकाश के दिन डीपीसी

 आईएएस एसोसिएशन की अध्यक्ष अरुणा शर्मा को प्रमोशन देने के लिए शनिवार अवकाश के दिन विभागीय प्रमोशन कमेटी (डीपीसी) की बैठक बुलाई गई। मालूम हो 1982 बैच के आईएएस अफसरों को एसीएस पद पर प्रमोशन मिलना है। इस बैच में श्रीमती शर्मा का नाम टॉप में है। डीपीसी पूरे बैच के लिए है, जैसे-जैसे पद रिक्त होते जाएंगे, वैसे-वैसे अफसरों का ओहदा बढ़ता जाएगा।
प्रदेश में एसीएस स्तर के अफसरों के दो पद रिक्त थे, हाल ही में स्नेहलता कुमार के केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटने के बाद एसीएस स्तर का एक पद रह गया है। चूंकि अरुणा शर्मा अपने बैच की सबसे सीनियर अफसर हैं, इसलिए इनको एसीएस पद पर प्रमोशन मिलना तय है।

10:32 PM - No comments

उत्तराखण्ड के लाटसाब को पुराने भोपाल की चिंता

उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी को पुराने भोपाल के विकास की चिंता सता रही है। लाट साहब की कुर्सी संभालने के बाद पहली बार भोपाल आए कुरैशी ने यहां मीडिया से चर्चा में कहा कि राज्य की शिवराज सिंह चौहान सरकार पुराने भोपाल के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। उन्होंने यह जरूर कहा कि उत्तराखण्ड घूमने आने वाले मध्यप्रदेश के लोगों का स्वागत वहां की सरकार करेगी।
सेंट्रल प्रेस क्लब द्वारा आयोजित प्रेस से मिलिए कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल कुरैशी ने कहा कि राज्य के चारों धाम (बद्रीनाथ, केदानाथ, यमोत्री, गंगोत्री) पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की सुविधाओं को हर संभव प्रयास किया जाएगा। प्रयास होगा कि चारों धाम के लिए प्राधिकरण गठित हो। वे बताते हैं कि उन्होंने अभी बद्रीनाथ की यात्रा की है, अन्य तीर्थों में भी जाएंगे। क्या राज्यपाल रबर स्टाम्प की तरह काम करने के सवाल पर उन्होंने यही कहा राज्यपाल के पास असीम शक्तियां हैं, पद की गरिमा को ध्यान में रखकर काम करना चाहिए। राज्यपाल पद की जिम्मेदारी के बाद क्या फिर से सक्रिय राजनीति में आएंगे, इस पर कुरैशी ने यही कहा कि राज्यपाल का कार्यकाल तो पूरा कर लेने दो।

10:31 PM - No comments

नौकरशाहों का चुनावी वर्ष में प्रदेश से तौबा


 प्रदेश में अगले वर्ष विधानसभा के आम चुनाव होना है ऐसे में केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ अफसरों ने प्रदेश से तौबा करना शुरू कर दिया है। वे चुनाव तक मध्यप्रदेश नहीं लौटना चाहते।

प्रदेश के ऐसे आईएएस अफसरों की संख्या अच्छी खासी है जो प्रतिनियुक्ति पर गए तो प्रदेश लौटे ही नहीं, बल्कि समय-समय पर वे अपना कार्यकाल बढ़वाने में सफल रहे। अब इनमें अमर सिंह का नाम भी जुड़ गया है। मध्यप्रदेश कॉडर में 1981 बैच के आईएएस अफसर अमर सिंह वर्ष 2004 में केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए थे। कांग्रेस सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पसंदीदा अफसरों में शुमार अमर सिंह ने प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की तैयारी कर ली थी। इन्हें सफलता मिली 7 अक्टूबर 2004 को। इस तिथि को वे केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए। तभी से ये प्रतिनियुक्ति पर ही हैं। हालांकि इनकी प्रतिनियुक्ति अवधि समाप्त होने पर इनकी प्रदेश वापसी की अटकलें शुरू हो गर्इं थीं, लेकिन ये वापस नहीं लौटे। बताया जाता है कि केन्द्र सरकार ने इनकी प्रतिनियुक्ति अवधि बढ़ा दी है। अब ये अपना कार्यकाल पूरा होने या फिर सेवानिवृत्ति तक केन्द्र सरकार में सेवाएं दे सकते हैं। मालूम हो इनका कार्यकाल मई 2013 तक है।
इसी प्रकार वरिष्ठ अधिकारी पद्मवीर सिंह ने भी अपनी प्रतिनियुक्ति अवधि बढ़वाने में सफलता हासिल की। मध्यप्रदेश कॉडर में 1977 बैच के आईएएस अधिकारी सिंह लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी मसूरी में महानिदेशक हैं। इनकी प्रतिनियुक्ति अवधि एक जून 2012 से फरवरी 2014 तक के लिए बढ़ी है। इसी तिथि में ये सेवानिवृत्त भी हो जाएंगे। यहां यह बताना जरूरी है कि अवनि वैश्य के सेवानिवृत्त होने के पहले जब प्रदेश में नए चीफ सेके्रटरी की तलाश चल रही थी तब इनके नाम पर भी गंभीरता से विचार हुआ था, लेकिन बात नहीं बनी।
लम्बे समय बाद केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस लौटीं अमिता शर्मा ने चंद दिनों मध्यप्रदेश में सेवाएं दीं और दिल्ली के मध्यप्रदेश भवन में अपनी पोस्टिंग करवाने में सफलता हासिल की। अब इन्होंने फिर से केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की तैयारी कर ली है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में एडीशन सेके्रटरी की जिम्मेदारी मिलने जा रही है। इस संबंध में प्रदेश सरकार की हरीझंडी मिलना शेष है। यहां से रिलीव होते ही ये नई जिम्मेदारी संभाल लेंगीं।

विजय श्रीवास्तव भी जाने को तैयार -
सामान्य प्रशासन विभाग (कार्मिक) की प्रमुख सचिव विजया श्रीवास्तव भी प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली जाने की तैयारी में हैं। राज्य सरकार ने हरीझंडी दिखा दी है। अब इन्हें केन्द्र सरकार से पदस्थापना आदेश का इंतजार है।

8 माह में ही मोह भंग -
लम्बे समय तक केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहे वरिष्ठ आईएएस अफसर रामानुजम की प्रदेश में वापसी होते ही राज्य सरकार ने इन्हें खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण विभाग की कमान सौंपी। अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के अफसर रामानुजम का 8 माह में प्रदेश से मोह भंग हो गया और इन्होंने केन्द्र की राह पकड़ ली। 1979 बैच के आईएएस अफसर रामानुजम प्रधानमंत्री कार्यालय में सेवाएं दे रहे हैं। हालांकि इसके पहले भी वे प्रधानमंत्री कार्यालय में सेवाएं दे चुके हैं, उनके पुराने अनुभवों को देखते हुए उन्हें दोबारा पीएमओ में जिम्मेदारी मिली।

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‘गीता’ पर अड़े एमपी, सीजी

 आईएएस अफसर एम गीता को लेकर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकारें अड़ी हैं। छत्तीसगढ़ कॉडर कीं ये आईएएस अफसर लम्बे समय से मध्यप्रदेश में सेवाएं दे रहीं है, जबकि छत्तीसगढ़ सरकार लगातार अपने अफसर को वापस मांग रही है, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार उसे वापस भेजने के मूड में नहीं है। अब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर अपने अफसर को वापस मांगा है।
महिला आईएएस अधिकारी एम गीता का विवाद नया नहीं है। मध्यप्रदेश के विभाजन और छत्तीसगढ़ गठन के बाद इन्होंने स्वेच्छा से छत्तीसगढ़ कॉडर मांगा और इन्हें छत्तीसगढ़ राज्य आवंटित कर दिया गया। इन्होंने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए छत्तीसगढ़ राज्य में ज्वानिंग के लिए समय मांगा, इस बीच ये मध्यप्रदेश में सेवाएं देती रहीं। जब लम्बे समय तक ये छत्तीसगढ़ नहीं पहुंची तो छत्तीसगढ़ सरकार ने मध्यप्रदेश सरकार को पत्र लिखकर अपने अफसर की सेवाएं वापस मांगी, लेकिन एम गीता ने छत्तीसगढ़ जाने का इरादा त्यागकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। यहां इनकी याचिका खारिज हो चुकी है। छत्तीसगढ़ सरकार लगातार अपने अफसर की सेवाएं वापस मांग रही है, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार कोर्ट का हवाला देते हुए उन्हें वापस भेजने को तैयार नहीं है।
विधानसभा में हुई गूंज -
उज्जैन कलेक्टर एम गीता को वापस न जाने की गूंज मध्यप्रदेश विधानसभा में भी हो चुकी है। बीते बजट सत्र के दौरान विधायक पुरुषोत्तम दांगी ने यह सवाल उठाया था। इस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लिखित उत्तर में स्वीकार किया था कि एम गीता को छत्तीसगढ़ कॉडर आवंटित है, लेकिन अभी ये मध्यप्रदेश में सेवाएं दे रहीं है। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि कॉडर आवंटन का मामले पर कोर्ट ने स्थगन दिया है।
अब सीएम को पत्र -
1997 बैच की आईएएस अफसर एम गीता के मामले में अभी तक दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों के बीच पत्र व्यवहार चल रहा था। छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव दो बार मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिख चुके हैं, लेकिन उन्हें वही पुराना जवाब मिलता रहा। अब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने अपने प्रदेश में आईएएस अफसरों की कमी का हवाला देते हुए कहा है कि प्रदेश में वैसे ही आईएएस अफसरों की कमी है, ऐसे में हमारे अफसर की सेवाएं वापस की जाएं। चूंकि एम गीता वरिष्ठ आईएएस हैं, इसलिए इनके अनुभव का लाभ राज्य को मिलेगा। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के पत्र के बाद से सचिवालय में हलचल तो मची है, लेकिन इस बार भी सरकार इन्हें वापस भेजने के मूड में नहीं है।

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नाकारा नहीं है प्रदेश के नौकरशाह


नाकारा अफसरों की छुट्टी किए जाने संबंधी केन्द्र सरकार के फरमान से देश के नौकरशाहों में भले ही खलबली मची हो, लेकिन मध्यप्रदेश के नौकरशाहों को टेंशन लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि सरकार ने यहां के किसी भी नौकरशाह को नाकारा नहीं मानती। सभी का काम-काज बेहतर है।

मामला अफसरों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) से जुड़ा है। केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय ने मध्यप्रदेश सहित सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजे परिपत्र में कहा है कि 15 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके अखिल भारतीय सेवा के अफसरों के काम-काज की समीक्षा की जाए। समीक्षा के दौरान जो अफसर नाकारा हों, उन्हें सेवानिवृत्त किया जाए। कार्मिक मंत्रालय की नाराजगी इस बात को लेकर ज्यादा है कि वर्षों से अफसरों की एसीआर योग्य और संतोषप्रद है, ऐसे अफसरों के काम-काज की पड़ताल जरूरी है क्योंकि ये स्थिर की श्रेणी आते हैं। इन्हें नाकारा मानते हुए नौकरी से छुट्टी किया जाना ही बेहतर है। कार्मिक मंत्रालय का सर्कुलर मध्यप्रदेश सरकार को भी मिल चुका है। इसकी भनक लगते ही अफसरों के खेमे में हलचल मची है। इनकी रूचि अब अपनी-अपनी एसीआर को जानने में अधिक है।
सभी की एसीआर तैयार -
सूबे में आईएएस अफसरों की एसीआर का काम लगभग पूरा हो चुका है। मंत्रालय को प्राप्त हुई एसीआर में ज्यादातर के काम-काज को बेहतर माना गया है। इसमें आउट स्टेंडिंग और गुड-वैरीगुड वालों की संख्या अधिक है। औसत एसीआर वालों की संख्या नगण्य है।
दागियों की खासी संख्या -
ऐसा नहीं है प्रदेश में सभी आईएएस अफसर बेतहर है। दागियों की संख्या 30 से अधिक है। इसमें कुछ के खिलाफ लोकायुक्त संगठन जांच कर रहा है तो कुछ के मामले ईओडब्ल्यू में चल रहे हैं। विभागीय जांच के घेरे में भी कई अफसर फंसे हैं। मनरेगा में फंसे कई अफसरों के बारे में कार्यवाही किए जाने के मामले में तो संबंधित विभाग सरकार को लिख चुका है इसके बाद भी संबंधितों पर कार्यवाही नहीं हो रही है। आश्यर्य यह है कि सभी अफसरों के काम-काज को बेहतर माना गया है।
इनके खिलाफ नजरें टेढ़ी -
सूबे के चार आईएएस अफसर ऐसे हैं जिनके मामले में राज्य सरकार ने नजरें टेढ़ी की हैं। इनमें वरिष्ठ आईएएस अफसर अरविन्द जोशी, टीनू जोशी को तो बर्खास्त किए जाने की सिफारिश की जा चुकी है। अनुशासनहीनता के दायरे में आए अनिल यादव के बारे में केन्द्र से मार्गदर्शन मांगा गया है, जबकि दुष्कृष्य मामले में फंसे वीके कटेला के खिलाफ जांच चल रही है।

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अपनों से ही बचती नजर आएगी सरकार


16 जुलाई से शुरू हो रहा विधानसभा सत्र बहुत हंगामा भरा होने के आसार हैं। विपक्षी दल ने तो सरकार को सदन में घेरने की तैयारी कर ली है, वहीं सत्ता पक्ष के विधायक भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने गेंहू खरीदी, भ्रष्टाचार, सरकारी धन का दुरुपयोग, कानून व्यवस्था जैसे तीखे सवाल पूछे हैं। अब सरकार बचाव की मुद्रा में है।
विधानसभा का मानसून सत्र वैसे तो छोटा है, 12 दिवसीय सत्र में कुल 10 बैठकें होना है। सत्र की घोषणा के साथ ही विधानसभा सचिवालय में विधायकों के सवाल आना शुरू हो गए। अब सवालों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए राज्य की भाजपा सरकार भी जानती है कि विपक्ष के तेवर तीखे होंगे, सरकार उनका मुकाबला करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। मंत्रियों से कहा गया है कि वे तैयारी के साथ सदन में मौजूद रहें।
गेंहू खरीदी पर अधिक रुचि -
सत्तापक्ष हो या फिर विपक्षी दल के विधायक, सभी ने गेंहू खरीदी से जुड़े सवाल अधिक पूछे हैं। आरोप हैं कि सरकार की लापरवाही के कारण ही किसानों को परेशान होना पड़ा। उनका गेंहू समय पर नहीं खरीदा गया। खुले में पड़ा गेंहू सड़ गया। भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग से जुड़े सवाल भी तीखे हैं। इसके अलावा सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, अवैध उत्खनन से जुड़े सवालों पर भी सरकार को घेरने का प्रयास किया गया है।
नौकरशाह भी निशाने पर -
विधायकों के निशाने पर प्रदेश सरकार के अफसर और नौकरशाह भी निशाने पर हैं। अफसरों के यहां मिल रही आकूत दौलत और सरकार द्वारा कथित तौर पर बचाव संबंधी सवाल भी विधायकों ने पूछे हैं।
एक-एक विभाग के लिए दो दिन -
विधायकों को सवाल पूछने और मंत्रियों को जवाब देने के लिए दो दिन का निर्धारित किए गए हैं।

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5 की कलेक्टरी सुरक्षित, 6 को नई जिम्मेदारी

 आईएएस अफसरों की बहुप्रतिक्षित तबादला सूची कल शाम होते-होते जारी कर दी गई। हालांकि यह प्रशासनिक सर्जरी आधी अधूरी है। इस सर्जरी में पांच आईएएस अफसरों की कलेक्टरी सुरक्षित रही जबकि छह अफसरों को नई जिम्मेदारी दी गई है। पांच अफसरों को पहली बार कलेक्टरी का मौका मिला है।
ई-गवर्नेंस में बेहतर काम करने वाले खण्डवा कलेक्टर कवीन्द्र कियावत को अब मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर की जिम्मेदारी मिली है। इसे महज संयोग ही कहा जाएगा कि तबादले के बाद इन्हें राजधानी भोपाल में आयोजित एक गरिमामय कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने पुरस्कृत भी किया। ग्वालियर में कलेक्टर के रूप में बेहतर काम करने वाले आकाश त्रिपाठी अभी मुख्यमंत्री सचिवालय में जिम्मेदारी संभाल रहे थे, अब इन्हें इंदौर जिले की कमान सौंपी गई है। राघवेन्द्र सिंह को इंदौर श्रेष्ठ काम करने के लिए पर्यटन विकास निगम की कमान दिए जाने को तोहफा के तौर पर देखा जा रहा है। इन्हें यह जिम्मेदारी मिलना पहले से ही तय थी। कृषि विभाग के एडीशनल सेके्रटरी संतोष मिश्रा को शिक्षा मण्डल सचिव पदस्थ किए जाने का निर्णय लोगों की समझ से परे है, क्योंकि ये 12 वर्ष पहले भी यहां सचिव रह चुके हैं। यहां के सचिव केदारलाल शर्मा को हटाए जाने के पीछे शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनीस के साथ पटरी न बैठ पाना माना जा रहा है।
प्रमोटी अफसरों पर भरोसा -
सरकार ने इस बार प्रमोटी अफसरों पर अधिक भरोसा जताया है। कवीन्द्र कियावत, एम के अग्रवाल, नीरज दुबे, सीबी सिंह, बीएम शर्मा, अशोक भार्गव ऐसे आईएएस अफसर जिनकी कलेक्टरी सुरक्षित है, यह बात अलग है इन्हें अन्य जिलों की कमान सौंपी गई है। जबकि आनंद कुमार शर्मा, सुरेन्द्र उपाध्याय, राजीव दुबे को पहली बार कलेक्टरी का मौका मिला है। ये सभी प्रमोटी आईएएस अफसर हैं। नागर गोजे मदान विभीषण और भोंडवे संकेत शांताराम को भी पहली बार कलेक्टरी मिली है। नागर को डिण्डोरी और भोंटवे को अशोकनगर की कमान मिली है।

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IAS कटेला के भाग्य का फैसला इसी हफ्ते

 लम्बे समय से निलंबित चल रहे आईएएस विनोद कटेला के भाग्य का फैसला इसी सप्ताह हो जाएगा। ये एक महिला कर्मचारी से ज्यादती के आरोप में मई 2007 से निलंबित हैं। न्यायालय में आरोप सिद्ध नहीं हो पाने के कारण इन्हें बरी किया जा चुका है।
विनोद कटेला की निलंबन अवधि 15 जुलाई तक है, अब सरकार को तय करना है कि इनकी निलंबन अवधि बढ़ाई जाए या फिर इन्हें बहाल किया जाए। कोर्ट द्वारा इन्हें बरी किए जाने के आधार पर इनको बहाल किए जाने की संभावना अधिक है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इन्हें जिस मामले में निलंबित किया गया था, उसी आरोप से ये बरी हो चुके हैं। इनके मामले में तय कमेटी की बैठक जल्द ही होने वाली है, इसी कमेटी के समक्ष इनकी बहाली के संबंध में भी निर्णय भी होगा। मामला 19 मार्च 1999 का है जब जब ये बिलासपुर जिला पंचायत में सीईओ थे। उस दौरान उनके अधीनस्थ आदिम जाति कल्याण विभाग की एक अधीक्षिका ने इनके ऊपर ज्यादती का आरोप लगाया था। महिला ने घटना के एक नवम्बर 2000 को अनुसूचित कल्याण थाने में ज्यादती की रिपोर्ट दर्ज कराई। इसी मामले में न्यायालय में इनके खिलाफ चालान पेश किया गया और गिरफ्तारी भी हुई। इधर मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2007 में इन्हें निलंबित करते हुए विभागीय जांच भी शुरू कर दी। विभागीय जांच अभी भी जारी है।
गिरफ्तारी के तरीके पर आपत्ति -
आईएएस अफसर कटेला भले ही के आरोपी रहे हों, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा उस दौरान उन्हें गिरफ्तार किए जाने के तरीके पर सख्त आपत्ति की थी। कटेला वर्ष 2003 में जबलपुर से गिरफ्तार किए गए थे, उस दौरान ये जबलपुर में एडीशनल कमिश्नर हुआ करते थे। छत्तीसगढ़ पुलिस जबलपुर आई और कटेला को अपने साथ ले गई, मध्यप्रदेश सरकार को इसकी भनक तब लगी पुलिस उन्हें यहां से उठा ले गई। इस पर मध्यप्रदेश सरकार ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए आपत्ति की थी कि छत्तीसगढ़ पुलिस को मध्यप्रदेश आने के पहले सूचना देना चाहिए थी। हालांकि मामले की गंभीरता को देखते हुए 14 मई 2007 को मध्यप्रदेश सरकार ने कटेला को निलंबित कर दिया था।

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सामंतरे पर भारी पड़ी नाफरमानी


वरिष्ठ आईएएस अफसर दिलीप सामंतरे पर राज्य सरकार के आदेश का पालन न करना भारी पड़ गया। इस नाफरमानी पर सरकार ने उसने सामान्य प्रशासन विभाग की जिम्मेदारी वापस लेते हुए बिना विभाग का अफसर बना दिया। कल सुबह जारी आदेश को देर शाम तक गोपनीय रखा गया। भ्रम फैलने पर इसे सार्वजनिक किया गया।
मामला यूनियन कार्बाइड परिसर में फैले जहरीले कचरे को जर्मनी से जुड़ा है। इस जहरीले कचरे को जर्मनी में नष्ट किया जाना है। इसके पहले राज्य सरकार की ओर से जर्मनी कंपनी से करारनामा किया जाएगा। करारनामा तैयार करने के लिए राज्य सरकार ने सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव सामंतरे की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया। सामंतरे इस जिम्मेदारी के लिए तैयार नहीं थे। घटनाक्रम दो दिन तेजी से बदलता रहा। बताया जाता है कि परसों सामंतरे ने आदेश नहीं लिया तो शाम को यह यह चर्चा रही कि उनके निवास पर जाकर आदेश की तामीली कराई जाए, लेकिन आदेश की तामीली नहीं हो सकी। मुख्य सचिव ने इसे गंभीरता से लिया। इसकी जानकारी मुख्यमंत्री को दी गई। अगले दिन सुबह मंत्रालय का काम-काज प्रारंभ होते ही सामंतरे से विभाग की जिम्मेदारी वापस लेने के आदेश दिए। इसी के साथ ही संसदीय कार्य तथा जन शिकायत निवारण विभाग के प्रमुख सचिव सुदेश कुमार को सामान्य प्रशासन विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंपने के आदेश दिए गए। मुख्य सचिव के हस्ताक्षर से आनन-फानन में आदेश जारी का पालन हुआ। सामंतरे विभाग के विभाग के अफसर बना दिए गए। इस आदेश को इतना अधिक गोपनीय रखा कि किसी को इसकी कानों कान खबर नहीं हुई। दोपहर होते-होते मंत्रालय में इसकी सुगबुगाहट शुरू हो गई, लेकिन आदेश के प्रति सिर्फ संबंधितों को ही उपलब्ध कराई गई। शाम होते-होते आदेश को लेकर भ्रम फैलने लगा तो देर शाम सरकार ने आदेश सार्वजनिक किया। सुदेश कुमार ने भी विभाग की अतिरिक्त जिम्मेदारी संभालते हुए गैस राहत विभाग के अफसरों के साथ औपचारिक चर्चा की। आज सुबह मुख्य सचिव ने भी पूरे मामले की जानकारी ली।

10:24 PM - No comments

दागी नौकरशाहों को माफी ...!


मनरेगा के दागी दो नौकरशाहों सुखवीर सिंह और चंद्रशेखर बोरकर को अब राज्य सरकार माफ करने की तैयारी में है। तर्क दिया जा रहा है कि युवा अफसरों से जोश में गलती होना स्वभाविक है, गलती जानबूझकर नहीं हुई।
मामला वर्षों पुराना है, जब सुखबीर सिंह सीधी जिले के कलेक्टर थे और चंद्रशेखर बोरकर उसी जिले के सीईओ थे। आरोप हैं कि इन्होंने वहां जैट्रोफा के पौधों को ढाई करोड़ के इंजेक्शन लगवा दिए। तर्क दिया गया कि इन हार्मोन के इंजेक्शन से पौधे तेजी से बढ़ने लगेंगे। आरोप यह भी रहा कि इन्होंने जेट्रोफा बीज की सप्लाई, पौधों की खाद, कीटनाशक दवाओं और ग्रोथ हार्मोस के छिड़काव का काम एकमात्र फर्म ओम सांई बायोटेक, रीवा से कराया और भुगतान स्व-सहायता समूहों से करवाया। जबकि कंपनी के पास न तो टिन नंबर है और न ही रासायनिक दवा बेचने का पंजीयन। मामले की जांच में प्रथम दृष्टया में इन दोनों अफसरों को दोषी पाया गया। इसके बाद भी इन पर कार्यवाही नहीं हुई। चूंकि मामला पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से जुड़ा है, इसलिए विभाग सरकार को लगातार कहता रहा कि दोषी अफसरों पर कार्यवाही की जाए, लेकिन इन पर कार्यवाही तो दूर इन्हें लगातार बेहतर पोस्टिंग मिलती रही। बोरकर तो वर्ष 2002 से लगातार कलेक्टरी कर रहे हैं। सुखवीर सिंह की भी कुछ ऐसी ही स्थिति रही है।
सदन में हुई गूंज -
पौधों को हार्मोन के इंजेक्शन लगाए जाने की गूंज पिछले मानसून सत्र में भी हुई। दोषी अफसरों को बचाए जाने का आरोप लगाते हुए विपक्षी दल के सदस्यों ने सरकार को घेरने का प्रयास किया। उस दौरान पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने सदन को जानकारी दी थी कि अफसर जांच में दोषी पाए गए हैं, कार्यवाही करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को लिखा गया है। तभी से यह फाइल मंत्रालय में धूल खा रही थी।
प्रभावी अफसर हैं -
ये दोनों युवा आईएएस अफसर नौकरशाहों में काफी प्रभावी माने जाते हैं। सुखवीर सिंह भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के रिश्तेदार हैं, जबकि बोरकर सेवानिवृत्त आईएएस अफसर के दामाद हैं।

10:23 PM - No comments

नहीं खुल सकी आईएएस राजौरा की फाइल


मध्यप्रदेश कॉडर में 1990 बैच के आईएएस अफसर राजेश राजौरा की फाइल खुलने का रास्ता साफ होने के बाद भी सरकार ऐसा नहीं कर पा रही है। लम्बे समय से निलंबन का बोझ झेल रहे राजौरा भी चाहते हैं कि उनके मामले में सरकार शीघ्र निर्णय ले, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।
गृह सचिव रहते हुए करीब तीन वर्ष पूर्व आयकर छापे के दौरान इनके यहां आय से अधिक सम्पत्ति और करोड़ों रुपए की अचल सम्पत्ति के दस्तावेज मिलने के बाद से राज्य सरकार ने इन्हें निलंबित कर दिया था। आरोप था कि स्वास्थ्य विभाग के सचिव रहते हुए इन्होंने करोड़ों रुपए की दौलत कमाई। छापे की कार्यवाही के बाद आयकर विभाग ने जो रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी उसमें इसका विस्तृत भी दिया। निलंबन के बाद राज्य सरकार ने इनके खिलाफ विभागीय जांच की कार्यवाही भी शुरू की। सेवानिवृत्त मुख्य सचिव श्रीमती निर्मला बुच को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। विभागीय जांच शुरू होती इसके पहले ही ये सेंट्रल एडमिनिस्टेÑटिव ट्रिव्युनल (कैट) चले गए। कैट में इन्होंने सरकार की कार्यवाही को चुनौती दी। कोर्ट ने सरकार की कार्यवाही पर स्थगन देते हुए इन्हें राहत दी, इससे विभागीय जांच तो शुरू नहीं हो सकी, लेकिन इनकी बहाली नहीं हुई। सूत्रों का कहना है कि 24 फरवरी 2010 से निलंबित चल राजौरा ने बहाली के अनेक प्रयास किए लेकिन इन्हें सफलता नहीं मिल सकी। निलंबित चलने के कारण इनको प्रमोशन इत्यादि के लाभ भी नहीं मिल पा रहे थे, आखिरकार इन्होंने कैट से याचिका वापस ले ली। राज्य सरकार को पिछले माह इसकी सूचना भी मिल चुकी है, यानी सरकार अब विभागीय जांच कराए जाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन अभी तक जांच शुरू नहीं हो पाई है।
यह करना है सरकार को -
चूंकि राज्य सरकार विभागीय जांच के लिए जांच अधिकारी तो पहले ही नियुक्त कर चुकी है। चूंकि जांच शुरू होने के पहले ही कैट का स्थगन मिल गया था। इसलिए अब सरकार को चाहिए कि वह जांच अधिकारी को पत्र लिखकर विभागीय जांच शुरू करने के लिए कहे, लेकिन डेढ़ माह बाद भी सरकार जांच अधिकारी को पत्र नहीं लिख सकी है।

10:22 PM - No comments

मध्यप्रदेश आईएएस में 1974 बैच खत्म


पिछले माह जून में प्रदेश के दो वरिष्ठतम आईएएस अफसरों के सेवानिवृत्त होते ही प्रदेश में 1974 बैच खत्म हो गया। मध्यप्रदेश कॉडर में 1974 बैच में कुल चार आईएएस अफसर शामिल थे। इनमें अलका सिरोही सबसे सीनियर थीं। ये पूर्व में ही सेवानिवृत्त हो चुकीं हैं, जबकि सीनियरिटी में अगले नम्बर पर के एम आचार्य और रंजना चौधरी का नाम था। ये दोनों अफसर भी पिछले माह सेवानिवृत्त हो गए।

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कोठारी की कलेक्टरी सुरक्षित

खरगौन जिले के महेश्वर विधानसभा उप चुनाव में सत्तारूढ़ दल भाजपा को मिली सफलता के बाद नवनीत कोठारी को कलेक्टरी सुरक्षित हो गई है। वहीं चुनाव आयोग के निर्देश पर हटाए गए राजेश्वर प्रसाद गुप्ता को फिर से जिले का एसपी बना दिया गया।
विधानसभा उप चुनाव के दौरान कलेक्टर, एसपी के खिलाफ आयोग में लगातार शिकायतें मिलने के कारण दोनों अफसर आयोग के निशाने पर रहे। आयोग की गाज गिरी एसपी राजेश्वर प्रसाद गुप्ता पर। आयोग ने मतदान के चंद दिनों पूर्व यानी 9 जून को एसपी गुप्ता को हटाते हुए 17वीं वाहिनी भिण्ड की सेनानी रुचिका जैन जिंदल को जिले का एसपी पदस्थ किया गया था। चुनाव खत्म होते ही राज्य सरकार ने गुप्ता को फिर से खरगौन का एसपी पदस्थ कर दिया। साथ ही रुचिका जैन को वापस बुला लिया है। ऐसे में विधानसभा आम चुनाव तक इनके पास जिले की जिम्मेदारी रहना तय है। कलेक्टर नवनीत कोठारी भी कलेक्टर बने रहेंगे।

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‘दुस्साहसी’ हैं सरकारी महकमे


प्रदेश के 16 नगरीय निकायों में हो चुनावों के चलते आचार संहिता लगी होने के बावजूद सरकारी महकमे मनमानी करने से नहीं चूक रहे हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को भी अंधेरे में रखा जा रहा है, आयोग की सख्ती के चलते सरकार को कई निर्णय बदलने पड़े या फिर उनमें रोक लगाना पड़ी। फिर भी दुस्साहस कम नहीं हो रहा है।
नगरीय निकाय चुनाव की घोषणा के साथ आयोग ने स्पष्ट कर दिया था कि चुनाव कार्य में लगे अधिकारी-कर्मचारियों का तबादला न किया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। सरकार ने एक के बाद एक तबादले करना शुरू कर दिए। आईएएस और आईपीएस अफसरों का लम्बे समय से चल रहा तबादला मंथन का परिणाम आचार संहिता के दौरान  ही उजागर हुआ। अफसरों के थोक में तबादले हुए। उन जिलों और संभागों के अफसर भी प्रभावित हुए जहां चुनाव आचार संहिता प्रभावी है। राज्य निर्वाचन आयोग ने इसे गंभीरता से लेते हुए उनके तबादलों पर रोक लगा दी। सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ा। इसी प्रकार सहकारिता, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, वन विभागों ने भी दुस्साहस दिखाया। आयोग इन जिलों के प्रभावित अफसर और कर्मचारियों के तबादलों पर रोक लगा दी।
गलती या मनमानी -
सवाल उठता है जब आयोग पूर्व में ही आचार संहिता प्रभावी जिलों में तबादलों पर रोक लगा चुका है तो फिर इन जिलों के अफसरों और कर्मचारियों के तबादले किए जाने का निर्णय समझ से परे है। सरकार के इस निर्णय की चर्चा मंत्रालय में तो है, लेकिन इस मामले में अफसर खुलकर चर्चा करने से कतराते हैं। आईएएस और आईपीएस अफसरों की सूची तो मुख्य सचिव से अनुमोदित हुए मुख्यमंत्री की हरीझंडी मिलने के बाद जारी होती है। यानी मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से भी ऐसा निर्णय करवा लिया गया जो नहीं होना चाहिए था। आयोग के सख्त रवैया के कारण निर्णय पर रोक लगाना पड़ी।